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अफवाहों ने किया खेल, खाने के तेल के दामों में आई गिरावट

देश में सोयाबीन बिक्री को लेकर फैली अफवाहों की वजह से खाने के तेल के दाम कम हो गए. पिछले हफ्ते देश में तेल-तिलहनों के दामों में गिरावट देखी गई. इसका मुख्य कारण सहकारी संस्था नेफेड द्वारा 21 अप्रैल से सोयाबीन बिक्री की अफवाहें और गुजरात में मूंगफली की सरकारी बिक्री रही. इन खबरों ने बाजार में घबराहट पैदा की, जिससे कारोबारी धारणा प्रभावित हुई और तेल-तिलहनों की कीमतें नीचे आईं.

बाजार सूत्रों के अनुसार, गुजरात में सरकार मूंगफली बेच रही है, जो पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 17-18% कम दाम पर थी. अब नेफेड के सोयाबीन बिक्री की अफवाहों ने बाजार को और दबाव में ला दिया. इससे कच्चे पाम तेल का दाम 1,125-1,130 डॉलर प्रति टन से घटकर 1,100-1,105 डॉलर प्रति टन हो गया. हालांकि, सोयाबीन डीगम का दाम 1,105-1,110 डॉलर से बढ़कर 1,115-1,120 डॉलर प्रति टन हुआ, लेकिन अफवाहों ने इसकी मजबूती को कमजोर कर दिया.

सरकार ने सोयाबीन डीगम का आयात शुल्क 81 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया, जिससे कीमतों में मजबूती की उम्मीद थी, लेकिन घबराहट के माहौल ने इसे बेअसर कर दिया. आयात करने वालों की खराब माली हालत के चलते वे सोयाबीन तेल को लागत से भी कम दाम पर बेच रहे हैं, जिससे बाजार में और गिरावट आ रही है. सरसों तेल, जो पहले ही एमएसपी से 4-5% नीचे था, और मूंगफली तेल भी इस गिरावट से नहीं बच पाए.

सोपा ने की बिक्री पर रोक की मांग

सोयाबीन तेल उद्योग के संगठन सोपा ने सरकार से नेफेड की सोयाबीन बिक्री पर रोक लगाने की मांग की है, क्योंकि इससे बिजाई प्रभावित हो सकती है. एक्सपर्ट ने भी ऐसी बिक्री के नुकसान की चेतावनी दी है. मूंगफली और सरसों के लिए कोई मजबूत समर्थन नहीं दिख रहा, जिससे किसानों का भरोसा डगमगा रहा है. पहले आंध्र प्रदेश में सूरजमुखी और मूंगफली की खेती जोरों पर थी, लेकिन भरोसे की कमी ने इसे लगभग खत्म कर दिया. अब देश सूरजमुखी तेल के लिए पूरी तरह इंपोर्ट पर निर्भर हो गया है.

सूत्रों ने बताया कि थोक दामों में गिरावट का फायदा आम कस्टमर तक नहीं पहुंच रहा. मिसाल के तौर पर, मूंगफली तेल का थोक दाम कम है, लेकिन खुदरा बाजार में यह 195 रुपये प्रति लीटर के आसपास बिक रहा है. सरकार और तेल संगठनों को इस ओर ध्यान देना होगा कि गिरावट का लाभ ग्राहकों तक कैसे पहुंचे.

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